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बोझ / देवी प्रसाद मिश्र

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आदमी रास्ते के किनारे अपने बोझ के पास बैठा था कि कोई आए तो उसकी मदद से वह बोझ को सिर पर उठाकर रख सके ।

कोई नहीं आ रहा था ।

एक आदमी दिखा। लेकिन उस के सिर पर बोझ था ।
उसने इन्तज़ार करते आदमी से कहा कि वह उसका बोझ उतरवा दे तो भला होगा ।

उसने बताया कि वह बहुत दूर से और देर से किसी आदमी को पाने की कोशिश कर रहा था जो उसके सिर पर रखे बोझ को आहिस्ता से नीचे रखवा सके। दो की मदद से उसे उसने सिर पर रखा था और दो की मदद से ही उसे नीचे रखा जा सकता था ।

इन्तज़ार करते आदमी ने उसका बोझ नीचे रखवाया ।

जो आदमी बाद में आया था उसने पहले से बैठे आदमी से कहा कि मैं तुम्हारा बोझ तुम्हारे सिर पर रखने में तुम्हारी मदद करता हूँ ताकि तुम अपने सफ़र पर आगे निकल सको । तुम्हारे जाने के बाद मेरा जाना होगा । तब तक मैं इन्तज़ार करूँगा। तब तक मैं इन्तज़ार करूँगा ऐसे आदमी का जो मेरा बोझ मेरे सिर पर रखने में मदद करे वैसे ही जैसे तुमने मेरी और मैंने तुम्हारी मदद की। तुम्हारे जाने के बाद जो आदमी आए हो सकता है उसके सिर पर बोझ हो। तो मैं उसका बोझ उतरवाऊँगा। फिर वह मेरा बोझ मेरे सिर पर रखवाएगा। और ख़ुद अपने बोझ के साथ बैठा रहेगा कि कोई आए और उसका बोझ उसके सिर पर रखवाने में उसकी मदद करे जिसे लेकर वह आगे निकल पड़ेगा।

और जो आदमी छूट गया है वह इन्तज़ार करेगा कि कोई आए ।