Last modified on 22 जुलाई 2008, at 02:35

बोध-प्राप्ति / महेन्द्र भटनागर

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:35, 22 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=राग-संवेदन / महेन्द्र भटनागर }}...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

परिपक्व

कड़वे अनुभवों ने ही
बनाया है मुझे!
आदमी की क्षुद्रताओं ने
सही जीना
सिखाया है मुझे!
विश्वासघातों ने
मोह से कर मुक्त
भेद जीवन का
बताया है मुझे!
ज़माने ने सताया जब
बेइंतिहा,
काव्य में पीड़ा
तभी तो गा सका,
मर्माहत हुआ
अपने-परायों से
तभी तो मर्म
जीवन का / जगत का
पा सका!