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"बोल 'महात्मा गाँधी की जय' छोड़ दिये कितनों ने प्राण, / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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कितनों ने, अविचल कलियाँ कितनी धरती पर गया बिखेर  
 
कितनों ने, अविचल कलियाँ कितनी धरती पर गया बिखेर  
 
 
 
 
स्वतंत्रता का झंझानिल वह, जगा दिये कंधे झकझोर  
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स्वतंत्रता का झंझानिल वह, जगा दिया कंधे झकझोर  
 
सोये हुए राष्ट्र को  जिसने, दिये विश्व को नव सन्देश
 
सोये हुए राष्ट्र को  जिसने, दिये विश्व को नव सन्देश
 
सत्य-अहिंसा के, निश्चल मानस में उठा सुवर्ण-हिलोर  
 
सत्य-अहिंसा के, निश्चल मानस में उठा सुवर्ण-हिलोर  
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जब लड़खड़ा खड़ा अपने पैरों पर वंदी राष्ट्र हुआ,
 
जब लड़खड़ा खड़ा अपने पैरों पर वंदी राष्ट्र हुआ,
 
जीवन से भर गयीं दिशायें, सिहर उठी धरणी थर-थर,
 
जीवन से भर गयीं दिशायें, सिहर उठी धरणी थर-थर,
ज्यों कोई मन्त्रविद् मन्त्र पढ़, गया लेखनी अनी छुआ.
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ज्यों कोई मन्त्रविद् मन्त्र पढ़, गया लेखनी-अनी छुआ.
 
 
 
 
 
टूट गयीं तड़-तड़ करके बेड़ी युग-युग की बाँधी थी  
 
टूट गयीं तड़-तड़ करके बेड़ी युग-युग की बाँधी थी  
 
महाक्रान्ति बन कर आयी जब वह गाँधी की आँधी थी.
 
महाक्रान्ति बन कर आयी जब वह गाँधी की आँधी थी.
 
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03:03, 17 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


बोल 'महात्मा गाँधी की जय' छोड़ दिये कितनों ने प्राण,
कितने वह भी कह न सके, हो गये पूर्व ही गिरकर ढेर
सुमन-हार-से, आमंत्रण दे मृत्यु बुलायी छाती तान
कितनों ने, अविचल कलियाँ कितनी धरती पर गया बिखेर
 
स्वतंत्रता का झंझानिल वह, जगा दिया कंधे झकझोर
सोये हुए राष्ट्र को  जिसने, दिये विश्व को नव सन्देश
सत्य-अहिंसा के, निश्चल मानस में उठा सुवर्ण-हिलोर
राष्ट्र-प्रेम की, महातेज से किया प्रभावित सारा देश.
 
वह स्वराज का ज्वार, मधुर मोहन की वंशी सुन-सुनकर,
जब लड़खड़ा खड़ा अपने पैरों पर वंदी राष्ट्र हुआ,
जीवन से भर गयीं दिशायें, सिहर उठी धरणी थर-थर,
ज्यों कोई मन्त्रविद् मन्त्र पढ़, गया लेखनी-अनी छुआ.
 
टूट गयीं तड़-तड़ करके बेड़ी युग-युग की बाँधी थी
महाक्रान्ति बन कर आयी जब वह गाँधी की आँधी थी.