Last modified on 18 मई 2015, at 14:16

बौराए बादल / जानकीवल्लभ शास्त्री

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:16, 18 मई 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

क्या खाकर बौराए बादल?
झुग्गी-झोंपड़ियाँ उजाड़ दीं
कंचन-महल नहाए बादल!

दूने सूने हुए घर
लाल लुटे दृग में मोती भर
निर्मलता नीलाम हो गयी
घेर अंधेर मचाए बादल!

जब धरती काँपी, बड़ बोले-
नभ उलीचने चढ़े हिंडोले,
पेंगें भर-भर ऊपर-नीचे
मियाँ मल्हार गुँजाए बादल!

काली रात, नखत की पातें-
आपस में करती हैं बातें
नई रोशनी कब फूटेगी?
बदल-बदल दल छाए बादल!
कंचन महल नहाए बादल!