भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भँवर के बीच आपन नाव खेवत जा रहल बानी / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:40, 30 मार्च 2015 का अवतरण
भँवर के बीच आपन नाव खेवत जा रहल बानी
बताईं का कि कतना लहर के झोंका सहल बानी
बहुत खुशकिस्मती से लोग लग जाले किनारे से
जहाँ जइसन मिलल धारा तहाँ तइसे बहल बानी
महल के सामने माटी के घर कमजोर अइसन हम
कबो चूअत, कबो सीड़त-बनत, अबले ढहल बानी
पहुँचले लोग कतने अपना मंजिल तक चलल अबले
समय के साथ भर दम रात-दिन हमहूँ चलल बानी
कहाँ ले हम कहीं अपना भलाई आ बुराई के
विधाता के लिखल कागज के एगो हम नकल बानी