भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भक्ति भाव / रूपसिंह राजपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आजकाल
भक्ति भाव मैं
'परमारथ',
इत्तो आ गयो।
ओ भेड़चाल सो
फैशन,
सब जगा छा गयो।
ईंगो कोई भी मौको,
लोग खोण कोनी देवैं।
जणाईं तो 'जुम्मे-जागरण' मैं
स्पीकर लगा'र,
गांव भर नैं सोण कोनीं देवैं।