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भक्त बनता हूँ मगर अधमों का सिरताज भी / बिन्दु जी

भक्त बनता हूँ मगर अधमों का सिरताज भी।
देखकर पाखंड मेरा हंस पड़े ब्रजराज भी।
कौन मुझसे बढकर पापी होगा इस संसार में।
सुन के पापों कि कहानी डर गये यमराज भी।
क्यूं पतित उनसे कहे सरकार तुम तारो हमें।
हैं पतितपावन तो रक्खेंगे अपनी लाज भी।
‘बिन्दु” दृग के दिल हिलादें क्यों न दीनानाथ का।
दर्द दिल भी साथ है औ’ दुखभरी आवाज भी।