Last modified on 23 मई 2017, at 08:28

भगवान / भूपिन / चन्द्र गुरुङ

Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:28, 23 मई 2017 का अवतरण (Sirjanbindu ने भगवान / भूपिन पृष्ठ भगवान / भूपिन / चन्द्र गुरुङ पर स्थानांतरित किया)

ओ असभ्य भगवान
घूस आए बिन पुछे
मन के निषेधित ईलाके में
और हृदय में प्रेम का बम फोड दिया।
जा रहा था
जीवन के कठिन उँचाइयों में अकेला
बीच में अपहरण किया
और सारा जीवन फिरौती माँगा।

एक लय में बहते सपनें
कपडों के जैसे मिलाकर रखे थे
छाती के अलमारी में
और चाबी मारी थी,
खोल दिया किसी चोर के जैसे।
ईच्छाओं के बीज बो कर आँखो में
दिवार लगाई थी
तोड दिया किसी क्रोधी के जैसे।
मैं खुद भी न तैरी हुई
अपने ही दिल के तलैया में
छपाक से कूदा
और कहा–
मैं अब यहीं आत्महत्या करना चाहता हुँ।

ओ आतंकारी
तुम्हारे स्मृतियों के ओभर डोज से
पागली बनी हूँ मैं,
बोलो किस अपराध में
मेरे रातों को अपदस्थ किया?
बोलो किस अभियोग में
प्रेम की लोरी सुनाकर
मुझे आजन्म कैदी बनाया?

मैं चक्कर काट रही पृथ्वी
तुम सूर्य,
मैं कलकल बह रही नदी
तुम समुद्र,
मैं सुसुकते उड रही हवा
तुम पहाड,
तुम्हारा छाती
मेरे प्रेम का पाठशाला।
तुम तक पहुँच कर खत्म होती मैं कोई अनाम यात्रा।
विस्थापित करके करोडौं भगवान
अस्थिपञ्जर के मन्दिर में
मैंने तो तुम्हें खडा कर दिया है।

नित्से ने मार दिया ईश्वर
इंसान चिन्तित हैं
पर एक आतंककारी को
मैंने तो भगवान मानकर पूजा किया है।