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भग्न वीणासँ ने पूछह राग वा कि रागिनी / धीरेन्द्र

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भग्न वीणासँ ने पूछह राग वा कि रागिनी,
लागि रहले भेद नहि किछु दिवस हो वा यामिनी।
जन्मभरि घुमिते रहल ओ मधुरतानक खोजमे,
अछि नुकायल करूण क्रन्दन ओकर स्वरकेर ओजमे।
देखि लेलक शव-परीक्षा आदर्श पुरूषक आइ जे,
अपन बूझय आइ ककरा कहह अप्पन आइके ?
साधनारत ओकर जीवन, दिव्य ज्योतिक ढेर अछि
आबि रहले जे कि कालिख ओ दिनक बस फेर अछि।
छिन्न नेहक तार भेले, किन्तु स्वर अनुगामिनी,
बाजि रहले तएँ लगै अछि टुटलसन ई रागिनी
चलऽ दए जे किछु चलै अछि नहि रोकह तों कामिनी,
भग्न वीणासँ ने पूछह राग व कि रागिनी।