गिरी गेलां ज्ञान बिन अन्हरिया मेॅ
लगी गेलै दाग चुनरिया मेॅ...
पाँच के रऽ देह पच्चीस के रऽ साड़ी
फँसी गेलै केश दुअरिया मेॅ...
दाग करम के चहूँ दिश गमकै
मची गेलै शोर नगरिया मेॅ...
जैसें सूर दीया संग जागै
या सूतल छी अटरिया मेॅ...
‘धीरज’ ज्ञान बिना जग सूना
पावी ले-हो-गुरु फुलबड़िया मेॅ...