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भज मन शंकर भोलानाथ भज मन॥ध्रु०॥ | भज मन शंकर भोलानाथ भज मन॥ध्रु०॥ |
00:47, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
भज मन शंकर भोलानाथ भज मन॥ध्रु०॥
अंग विभूत सबही शोभा। ऊपर फुलनकी बास॥१॥
एकहि लोटाभर जल चावल। चाहत ऊपर बेलकी पात॥२॥
मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर। पूजा करले समजे आपहि आप॥३॥