Last modified on 22 जुलाई 2011, at 20:16

भटकन / सुदर्शन प्रियदर्शिनी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:16, 22 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन प्रियदर्शिनी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> इतना म…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इतना मायावी तांत्रिक जाल
इतना भक भक उजाला
इतना भास्कर देय तेज
इतनी भयावह
हरियाली
इतना ताम झाम
इतने मुँह बाये
खडे सगे संबधी
पहले से ही
तय रास्ते
पगडडियाँ
और छोड देता है
वह नियन्ता
हमें सूरदास
की तरह
राह टटोलने।