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भटकी हुई इन श्याम घटाओं को झुका दो / कांतिमोहन 'सोज़'

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भटकी हुई इन श्याम घटाओं को झुका दो ।
प्यासा हूँ मैं बेहद मुझे दो घूँट पिला दो ।।

बेशक ये गिरेगा तो बहुत शोर करेगा
पर दर्द के झरने को पहाड़ों से गिरा दो ।

घनघोर उदासी से बहुत ऊब चला हूँ
तन्हाई मेरी मोर के पंखों से सजा दो ।

दो घूँट पिलाने से बचोगे भी कहाँ तक
दारू नहीं मिलती तो मुझे ज़हर पिला दो ।

तुम काम ही अपना करो अंजाम न देखो
बुझते हुए शोलों को ज़रा और हवा दो ।

ग़मगीन बनाने से मुझे कुछ न मिलेगा
ग़म तो है ग़िज़ा मेरी कोई और सज़ा दो ।

ये सोज़ की महफ़िल है यहाँ नूर बहूत है
वो ग़म की दमकती हुई किंदील बुझा दो ।।

21 जनवरी 2015