भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भभूति मल के आऊंगा गली में / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भभूति मल के आऊंगा गली में
अलख आ कर जगाऊंगा गली में
तुम अपने दर पे भिक्षा ले के आना
मैं जोगी बन के आऊंगा गली में।