भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भय / बेढब बनारसी

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:00, 13 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बेढब बनारसी }} {{KKCatKavita}} <poem> गगन में घन घेर आया रात है …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


गगन में घन घेर आया
रात है तिथि है अमावस
आक्रमण कर रहा पावस
नहीं दीपक भी यहाँ है
हे प्रिये माचिस कहाँ है
पास आओ लग रहा भय, काँपती सम्पूर्ण काया .
हो कहाँ इस कठिन बेला
मैं यहाँ सोया अकेला
क्या न दोगी तुम सहारा
हार्ट फेल न हो हमारा
मैं तुम्हें ऐसे समयके ही लिए था ब्याह लाया
है अँधेरे में बड़ा सा
सामने कोई खडा सा
प्राण तुम चाहो बचाना
प्राण-प्यारी जल्द आना
दास बनता हूँ, तुम्हें लो आज से मालिक बनाया
यह न समझो कर बहाना
चाहता हूँ मैं बुलाना
हृदय धड-धड कर रहा है
स्वेद दो गगरी बहा है
शीघ्र आओ आ रही बढ़ती हुई है एक छाया