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भरथरी लोक-गाथा - भाग 11 / छत्तीसगढ़ी

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कतेक गैना ल गावॅव मय
तीन महीना ल ओ
तीने महीना जादू मारे हे
जादू काटत हे राम
खड़े-खड़े सामदेई ये
रूपदेई राम
जादू ल बइरी इन काटत हें
जेला देखत हे राम
काटे मँ जादू कट जाए
नैना रानी ये ना
गुस्सा होवय देखतो बाई रामा ये दे जी।

कोपे माने का बइरी गुस्सा ल
मोर होवत हे ओ
देख तो दीदी सामदेई ये
रूपदेई रानी न
गुस्सा गुस्सा मँ दाई मारत हे
जादू मंतर ओ
जादू मंतर ओ
कलबल के राख कर देवय नैना रानी ल
आज नैना रानी ओ आनंद होगे
भरथरी ये राम
चरणों मँ आके का गिरय
सुन राजा मोर बात
जइसे गुरु तुम्हार
जोगी होही तुम्हार सिद्ध न
अइसे देवय आसीस जेला लेवत हे भरथरी हर, रामा ये दे जी।

ये रामा, ये रामा, ये रामा, ये रामा, ये रामा ये
कमरु नगर ले
देख तो दीदी भरथरी ये
चले आवत हे राम
गुरु गोरखनाथ भेर
कौरु कमच्छल जादू टोना
बइरी का बोलय
गुरु गोरखनाथ
गोरखपुर ल बनाये हे
मोर बिलाई अवतार
गुरु गोरखनाथ घलो ला
नई तो छोड़े हे राम
जहां धुनि बबा रमे हे
गुरु गोरख के ओ
सब तो बिलाई बइरी का बोलय
म्याऊँ- म्याऊँ ओ
जम्मर चेलिन चेला नरियावय
गुरु गोरखनाथ
धुनि म का बैरी बोलत हे
म्याऊँ-म्याऊँ ये ओ
धुनि बइरी ये अधूरा ये रामा ये दे जा।

लऊठी आवय भरथरी हर
गुरु गोरख के
अंगना म जऊन मेर धुनि हे
देखत हवय राजा
जम्मो बिलाई अवतरे हें
जादू मारे हे राम
देख तो नैनामति रानी ये
गुरु गोरखनाथ
बिलाई अवतार मे लपटत हे
जोन भेर धुनि रचाय
कलपी-कलप बइरी लोटत हे
म्याऊँ-म्याऊँ कहय
जतका चेलिन अऊ चेला ये
तऊन ल देखत हे राम
अइसे बानी ल रानी का बोलय, रामा ये दे जी।

लउटी के आई के देखत हे
भरथरी ह दाई ओ
कहां मोर गुरु हे
जम्मों दिखत हे राम
देख तो बिलाई अवतारी न
गुरु गोरखनाथ
कलपी-कलप भरथरी ये
सुरता करत हे राम
नई तो मिलत आवय खोजे म
सुमिरन करत हे न
सामदेई मोर सुमिरत हे
सुनले माता मोर बात
जऊने समय तुम जादू मारेंव
तिरिया चरित
मार जादू ल देवा
गुरु गोरखनाथ जल्दी ला देवा ओ बोलत हे, रामा ये दे जी।

कारी पिऊँरी चाऊँर
रानी मारत हे दाई ओ
देखतो दीदी सामदेई ह
गुरु गोरखनाथ ल
देखतो आदमी बनावत हे
कोरु नगर के
जतका घोड़ा बइरी गदहा ये
जतका सुआ ये
कऊनार पड़की परेवा ये
कऊनो सुरा ये राम
कऊनो कुबुबर बिलाई ये
कऊनो भेड़वा ये राम
कऊनो बोकरा ये बने हे
सबला आदमी बनाय
गुरु गोरखनाथ ल तो ये
कइसे आदमी बनाय
जतका चेलिन ल
नारी ये मोर बनावत हे राम
तऊनो ल देखत हे राजा ये
भरथरी ये ओ
जइसे गुरु तइसे तुम चेला
जोग पूरा हो जाय
अइसे बानी रानी बोलत हे, रामा ये दे जी।

कंचन मिरगा मरीच के गुरु जल बरसाय
कंचन मिरगा मरीच के रामा ये दे जी
मुनि जल बरसाय, कंचन मिरगा मरीच के
जम्मे ल आदमी बनावत हे
गुरु गोरख ओ
देख तो बोलय भरथरी ल
सुन राजा मोर बात
तोरो जोग बइरी सिद्ध होवय
लौटी जावा तु राज
गढ़ उज्जैनी मँ चल देवा
माता ये तुम्हार सामदेई ले भिक्षा लावा
चले जावत हे राम
गुरु के बानी ल पावत हे
गुरु बोलत हे बात
सुनले बेटा भरथरी
भरथरी ये राम
न तो नारी मोला भीख देवय
तो जोग साधव
कइसे के जोग ल साघॅव, ये दे साघॅव, रामा ये दे जी।

बोले वचन गुरु गोरख हर
सुन ले बेटा मोर बात ल
चले जाबे बेटा
उज्जैन सहर म
धुनि तॅय रमा लेबे ग
अइसे बानी ल बइरी बोलत हे
पित पिताम्बर ओ
गोदरी ल गुरु देवय
टोपी रतन जटाय
काँधे जनेऊँ ल देवत हे
हाथे खप्पर हे राम
भरथरी धरि आवत हे
गढ़ उज्जैन म
आगी लगे खप्पर ल रखत हे
जोग साधन हे न ओ गुरु गोरखनाथ ये, भाई ये दे जी।

धुनि रमाये भरथरी ल
गांव भर के हीरा
राज दरबार देखत हे
रानी डंका पिटाय
सुनले गांव के परजा ये
जऊन राजा हमार
ना तो मैनावती रानी ये
गोपी भाँचा हमार
तुँहरों गाँव ल नेवता हे
राजा तिलोकचंद
तुँहरों गरीब घर नेवता हे
मानसिंह राजा
जम्मे नेवता ल बलावत हे
बाइस गढ़ के राजा ल नेवता भेजत हे
नेवता सुने सामदेई के
भरथरी के आज
देखतो दीदी जोग बइठे हे
धुनि रमे हे न
जिहां खप्पर ओ रखे हे
दान देवत हे न
नगर के बइरी परजा ये
जतका रैयत हे ओ
जम्मे ल बइरी दान देवय
खप्पर म डॉरय आज
न तो गुरु के खप्पर ये
नई तो भरय दीदी
का धन करँव उपाय ल, रामा ये दे जी।

तब तो बोलय सामदेई ह
का तो करँव उपाये ल
देख तो अस्नादे बनावत हे
रंगमहल म आय
सुन्दर नहावत हे सामदेई
आनंद मंगल मनाय
सोने के भारी निकालत हे
मोर देख तो दाई
जऊने म मोहर धरत हे
मोहर घरिके ओ
सोने के थरी म आवत हे
मैनावती ये ओ
सुनले भइआ मोर बाते ल
दान देवत हव झोंकव न
खप्पर तो नई भरय
का तो करँव उपाय
तब तो सामदेई आवत हे
सोने के थारी म राम
मोती जवाहरात धरि के आवत हे
सामदेई ये
सुन्दर करके स्नान
खप्पर के तीर म जावत हे
जोग पूरा तुम्हार
हो जावय ले लेवव दान ल
सुन ले बेटा हमार
अइसे कहिके डारत हे, रामा ये दे जी।

बेटा कहिके डारत हे
सामदेई ह दाई ओ
देखतो खप्पर बइरी भरि जावय
जोग हो गय तुम्हार
पूरा अब होई जावय
जुग-जुग जीबे लला
देवय आसीस सामदेई ह
गुरु गोरखनाथ
जइसे गुरु तइसे चेला अव
जग मँ नाव तुहार
अम्मर हो जाहय बोलत हे, रामा ये दे जी।

भीख ल जोगी पाइके
सामदेई के ओ
देखतो दीदी भरथरी ह
चले आवत हे जऊन मेर गुरु के धुनि रमे
जिंहा जावय दीदी
आनंद मंगल मनावत हे
गुरु भरे जवाब
मँगनी के तय तो बेटा अस
तोला देहे रहेंव
बोलत हावय गुरु गोरख हर
सुनले राजा मोर बात
न तो सामदेई के तुम बेटा
न तो फुलवा के रे
बेटा तुम अब हमार
अइसे बानी ल गुरु बोलत हे, रामा ये दे जी।

पीत पिताम्बर गोदरी
कइसे देवत हे गुरु ओ
देख तो दाई भरथरी ल
टोपी रतन जटाय
कांधे जनेऊ सोहत हे
खप्पर देवय
खप्पर रखावत हे धुनि म
गुरु गोरखनाथ
बानी बचन कई सत बोलय
गद्दी देवय सम्हाल
धुनि के तिलक ल निकालत हे
तिलक सारत हे राम
भरथरी ल गुरु गद्दी ए
चल देवत हे
गुरु के गद्दी ल पावत हे
भरथरी ह न
गोरखपुरे में बइठ जावय
गुरु गद्दी म भरथरी ओ, रामा ये दे जी।

तब तो बोलय आल्हा-ऊदल हर
दुनिया ल गुरु
भरथरी ल
तय दान दिये
जग म होगे अमर
अमर होगे राज ग
तुँहर ये दे नाम
जग म नाम कमा लेवय
हमला देवा वरदान
कुछू तो देवा अइसे बोलत हे, रामा ये दे जी।

कथा समाप्त