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भरल - पुरलघर मधि छल हल चल / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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भरल - पुरलघर मधि छल हल चल
मचल एतय दिन राति।
रंग विरंगक पाहुनकेँ घर
अनलहुँ हम अरियाति।
भेटल ई सुख, से छल सरिपहुँ
अरजल पहिलुक पून।
उसरल से सब पसरल चहुदिशि
दुख, लगइछ मन सून।
सुमिरन करइत बीतत जीवन
ई दिन पलटि न आब।
केवल एक बनल रहि जायत
अतिथिक मधुर प्रभाव।
करिअ निवेदन सुनब सुनब सुहृद्जन
कष्ट धरब नहि कान।
अपन थिकहुँ से गुनि मन मानब
दुइतन एक परान।