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भरवा लाल मिरचा / रंजना जायसवाल

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क्या खूब लग रहा है
खाँचियों में भरा हुआ
निर्मल, सुन्दर, सुर्ख़
सुडौल, चमकदार और जवान
भरवा लाल मिरचा।
फल और तरकारियाँ हतप्रभ हैं
बाज़ार में इस प्रतियोगी के आ जाने से
उत्साहित हैं मगर स्त्रियाँ
बूढ़ी, जवान, सास-बहू सब
उन्होंने पहले ही धो-सुखा, भून पीस रखा है
धनिया, अजवायन, जीरा, मेथी
राई, कलौंजी, सौंफ, सरसों और खटाई का मसाला
महमहा रहा है जिससे पूरा घर।
आज वे जाएंगी बाज़ार
देख-भाल छाँट-बीनकर खरीदेंगी
नहीं चलेगा ज़रा सा भी टेढ़ा-पतला
इचका-पिचका, गला-सड़ा एक भी लाल मिरचा
अपने मरदों पर भी नहीं करती भरोसा
वे भरवा मिरचे के बारे में।
पाक-साफ होकर एक-एक मिरचे को
पोछेंगी सूती कपड़े से
धूप दिखाएँगी थोड़ी देर
नरम पड़ जाए उसका कड़ापन
हथेलियों के बीच कोमलता से घुलाएंगी
निकल सके आसानी से बीज और डंठला
फिर बीज, तेल, नमक मिले मसाले को
पतले दातून से भरेंगी मिरचों में इस तरह
कि फट न जाए एक भी मिरचा
तेल भरे मर्तबान में करीने से भरकर
रख देंगी धूप में पकने को
इस तरह पूरे मनोयोग से तैयार करेंगी स्त्रियाँ
भरवा लाल मिरचा।
चटनी हो या पिट्ठी चने की
रोटी हो या भात
भूजा, सत्तू चाहे जो भी
सबके साथ मजेदार लगता है
भरवा लाल मिरचा
वैसे तो बाज़ार में बना-बनाया भी मिलता है
एसिड में पका वह क्या खाक करेगा मुकाबला
लोकगीतों की तरह जन स्वाद में बस चुके
घर के बने, अपनेपन की खुशबू से लबरेज़
भरवा लाल मिरचे का।
मुझे तो लगता है दुनिया की बेहतरीन कविता है
ताज़ा, निर्मल, सुन्दर
सुर्ख़ चमकदार और जवान
भरवा लाल मिरचा
जिसे रच सकती हैं
सिर्फ स्त्रियाँ।