(राग इमन-ताल कहरवा)
भरे रहो तुम मधुर मनोहर मनके कण-कणमें वसुयाम।
नेत्र निरखते रहें निरन्तर बाहर छबिमय प्रियतम श्याम॥
बहती रहे प्रेम शुचितम की नित्य सुधा-धारा अविराम।
बना रहे जीवन, बस, एक तुहारा सुख-साधन अभिराम॥
जगे न मन में इच्छा कोई, एक तुहारे सुखको छोड़।
लगी रहे प्रत्येक वृािमें, सुख पहुँचानेकी शुचि होड़॥