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भरोसैमंद आखर / नन्द भारद्वाज

म्हैं अहसानमंद हूं
मिनखपणै रा वां मोभी पूतां रौ
जिकां री खांतीली मेधा
अर अणथक जतन
अमानवी यातनावां सूं गुजरतां थकां
भेळा कर पाया कीं
कीं भरोसैमंद आखर
जिका
आपांरी भटक्योड़ी उम्मीदां साथै
               जुड़तां ई
खोल सकै कोई नवौ मारग
अेक जीवंत लखाव
परतख अर असरदार
किणी धारदार औजार दांई
वै चीर सकै अंधारै रौ काळजौ
मुगती दिराय सकै
पयांळ में कैद उण उजास नै
जिकौ देय सकै आंख्यां नै नवी दीठ
ओप बुझता उणियारां नै
अेक अछेह आतमविस्वास -

के जिणरै पांण
उण ‘दयानिधान’ री
नींयत पिछांणी जा सकै -
के वांरी अखूट पूंजी है
आपरी आफळ अर अणभव नै
अंगेजता अै भरोसैमंद आखर !

सितंबर, 1973