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<poem>भर देते हो<br>बार-बार, प्रिय, करुणा की किरणों से<br>क्षुब्ध हृदय को पुलकित कर देते हो।<br><br>हो ।
मेरे अन्तर में आते हो, देव, निरन्तर,<br>कर जाते हो व्यथा-भाल लधु<br>भार लघुबार-बार कर-कंज बढ़ाकर;<br><br>
अंधकार में मेरा रोदन<br>सिक्त धरा के अंचल को<br>करता है क्षण-क्षण-<br><br>
कुसुम-कपोलों पर वे लोल शिशिर-कण<br>तुम किरणों से अश्रु पोंछ लेते हो,<br>नव प्रभात जीवन में भर देते हो।<br>हो ।<br/poem>
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