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भविष्यवाणी / सुभाष शर्मा

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मैं ज्योतिषी नहीं हूँ
फिर भी भविष्यवाणी कर सकता हूँ
पेट और पीठ के गणित को समझकर ।
लेकिन मैं यह भविष्यवाणी नहीं करूँगा
कि कौन सरकार
कब किसके हाथों गिरेगी
या किस पर गिरेगी
किस शासन-प्रशासन पर
शनि की साढ़े साती चल रही है
या राहु-केतु का प्रकोप है
मंगल नाराज हैं
या खुश बृहस्पति महाराज हैं
कब कैबिनेट बैठेगी
(गोया हमेशा खड़ी रहती है
काली घोड़ी की तरह)
और दर्जनों सर कलम
जो जाऍंगे कागज पर

मैं सिर्फ यह भविष्यवाणी करूँगा
कब हमारे पैरों से निकलेंगी गहरी जड़ें
और हाथों में नई-नई कोंपलें
कब मोर नाचेंगे बच्चों की आँखों में
और कूकेंगी कोयलें
दादुर टर्र-टर्र की धुन पर ढोल,
कबूतर गुटरगूँ की साज पर तबले
और मुर्गे अहले सुबह बजाएँगे बाँसुरी ।
तब सर्दियों में धूप
हमें अपनी गोद में लेकर
थपथपाएगी
गर्मी में वर्षा हमारे साथ
'ढुक्कुल' खेल खेलेगी
हर गाँव-शहर में पूजा होगी
राम-रहीम-ईसा की जगह
आदमी के हाथ-पैरों की
और लोग समझेंगे
राम-रहीम-ईसा बनाने वाले
यही हाथ हैं
जो सबके पास हैं ।
मैं यह भी भविष्यवाणी करूँगा
कब बच्चे बताऍंगे
आँचल काटकर
नहीं उड़ाई जा सकती पतँग
कागज को आकाश तक पहुँचाने के लिए
एक सूत्र चाहिए
जो साफ हो/सफेद हो
बिना गाँठ का जोड़ हो !

मैं यह भी बताऊँगा
कब बच्चों की खिलखिलाहट में खप जाएगी
बूढ़े-जवानों की तिलमिलाहट
जैसे चाँद में धब्बे
तब बीसवीं सदी के मरघट से
इक्कीसवीं सदी के पनघट तक
पहुँचते-पहुँचते हम सब
जान जाऍंगे कि
रोशनी आएगी
आँखों के स्वस्थ होने से
हाथों के चुस्त होने से ।

मैं भविष्यवाणी कर सकता हूँ
कब
देश के नौजवान
चौराहों पर खेलते ताश के पत्तों
और कॉफी हाउस में पीते चाय के प्यालों
में छिड़े युद्ध को
वहाँ से खींचकर
सड़कों पर लाऍंगे
कुहरों/बादलों से टकराऍंगे !

मैं भविष्यवाणी कर सकता हूँ
कब कानून बनाने वालों को भी
उसका पालन करना होगा
सेठों को भी खड़ा होना होगा/कतार में
तेल-नोन लेने के लिए ।