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भागते भागते नीली आँखों से / प्रमोद धिताल / सरिता तिवारी

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थकान से चूर–चूर हो गई हूँ
पसीने से लथपथ रोम-रोम भीगी हूँ
दौड़ते-दौड़ते फूला हुआ है साँस
चलते-चलते काँटे के जंगल में
फटे हुए हैं जिस्म के सारे कपड़े
ओह!
टप–टप टपक रहा है लहू!
खिसक गया है बालों का गुच्छा

खेत खेत
जंगल जंगल
नदी के किनारे किनारे
भाग रही हूँ बेतोड़
उन भयानक आँखों से

उन्होनें मेरे कमरे से ही लाए हैं खदेड़ते हुए मुझे
मेरी पढ़ने वाली मेज से उठाए है
एक झटके में उठाकर
गुलेल के पत्थर जैसे फेंक दिए थे बरामदे से

सितारे घूम रहे थे
उलटी टँगी हुई हँसिया कि तरह
लटक रहा था चाँद

और मेरे सामने
लगातार अट्टहास कर रही थी
एक भयावह डरावनी औरत

उसके बाल
मेरी स्कूल की सहेली
निरमाया मगर<ref>कवि की एक दोस्त जिसकी बलात्कार के बाद क्रूरतापूर्वक हत्या की गई थी।</ref> की जैसी थी ,बहुत ही सुन्दर !
उसकी जान
मैना सुनार<ref>एक किशोरी जिसकी जनयुद्ध काल में तत्कालीन शाही सेना द्वारा सन् 2004 में अपहरण करके हत्या की गई थी।</ref> की जैसी थी बहुत ही कोमल !
हाथ में गोदना खुदाई हुई
नीले बुट्टे थे ढेगनीदेवी<ref>एक किशोरी जिसकी जनयुद्ध काल में तत्कालीन शाही सेना द्वारा सन् 2004 में अपहरण करके हत्या की गई थी।</ref> के जैसै
जिस्म में था काला गाउन
नजराना खातून<ref>राजविराज, नेपाल की एक 24 वर्षीय महिला जिसको दहेज की मांग पूरा न होने पर सास और सलहज ने आग से जलाकर हत्या कर दि गई थी।
</ref> का जैसा

लेकिन अंगारों से भरा चूल्हा जैसा था उसका चेहरा
और चेहरे में चिपके हुई थीं
भयानक नीली नीली आँखें!

‘जब स्कुल में थी ,तब से लिखती थी न कविता ?
देखे थे
निर्दयतापूर्वक कटे हुए मेरे स्तन
टुकटे–टुकड़े करके तोड़े गए मेरे अंग
सिसम की टहनी में अटककर लटकी हुई मेरी बाल !
दुर्गन्धित मेरी लाश के ऊपर फूट-फूट कर रो रही
 मेरी माँ...
 मेरे न्याय के लिए क्यों कुछ नहीं लिखा तेरी कलम ने
अभी तक?’

... ... ...!!!
... ... ...???
अचानक मारा किसी ने मेरे गाल पर थप्पड़
और छितरायी हवा में निरमाया मगर का परिचित ठहाका !!!


आह!
कितने सारे काले गाउन!
कितनी सारी निली आँखें!
कितने सारे! कितने सारे!
हज़ार हज़ार निरमाया मगर
हज़ार हज़ार मैना सुनार
ओह!
हजारों ढेगनीदेवी
हजारों नजराना खातुन!

अचानक आ घिरी मेरे चारों ओर
काले गाउन के जंगल
कोयला पड़े हुए चेहरे के ऊपर चमके हुए
भयानक नीली नीली आँखें
उन हजारों औरत के ऐंठन से निकलकर
भागती हुई आयी हूँ यहाँ तक
खदेड़ रहे हैं वे अभी तक मुझे
और भागते भागते
जगी हूँ अभि अभि घोर निद्रा से

ओह!
भागते भागते नीली आँखों से
 मेरी आँखें भी हो चुकी हैं नीली नीली

मेरी कविता बनी हुई है
निरमाया मगर का अन्तहीन ठहाका

लेकिन नहीं है यह कविता
कोई प्रेतगाथा!