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भाग्य-विरुद्ध / महेन्द्र भटनागर

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प्रतिपल जब हिलते हैं
रचना-धर्मी हाथ,
चरणों का मिलता है
जब गति-धर्मी साथ,

तब बनती है तसवीर !
तब बनती है तक़दीर !