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भादों की अँधेरी, झकझोर / गढ़वाली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

भादों की अँधेरी, झकझोर<ref>बहुत</ref>।
ना बास ना बास, पापी मोर।
डुलदो<ref>कांपना</ref> तू क्यों, पापी प्राणी।
स्वामी बिना मैक, बड़ी खडरी<ref>दुख</ref>।
विश्वासी मन जो, औंद भारी।
भादों की बरसात जग रूझ<ref>जग भीग गया</ref>।
मन की मेरो ना, आग बुझ।
स्वामी बिना झूठी, लाणीं खांणी<ref>खाना लाना</ref>।
मनु की मनुमा, रई गांणी<ref>इच्छा</ref>।

शब्दार्थ
<references/>