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भारत संवत्सर / संजय तिवारी

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सृष्टि समय के साथ चली जिस गति से वह अनुभव है
सृजन -सृजन में स्पंदन की धार लिए वैभव है
पावन है, मनभावन है, नव मन है, आंगन आँगन,
सेवा, सार, समर्पण लाया, यह नव संवत्सर है।

प्राचेतस के श्लोक -श्लोक में, गीता के स्वर -स्वर में
गायत्री के अक्षर अक्षर, ब्रह्म कृपा निर्झर में
गंगा की कल -कल धारा में, सागर गीत सुनाता
संकल्पो को पावन करने आया संवत्सर है।

नचिकेता के प्रश्नो का आधार रहा जो स्वर है
उपनिषदों की भाषा का आधार रहा जो स्वर है
अध्यायों, उप अध्यायों की हर वल्ली गाती है
काल चयन है, ऋतु पावन है, भारत संवत्सर है।