भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भारी घोड़सारन तलावन तिलाक लिख्यो / अज्ञात कवि (रीतिकाल)

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भारी घोड़सारन तलावन तिलाक लिख्यो ,
गड़िगे अकब्बर बहुरि नाहीँ बहुरे ।
ताके कवि बीरवर तृन सम गुन्यो नाहिँ ,
ऎसेहू न भये कलि कर्ण हू ते लहुरे ।
लछमी कहति सब सूमन ते बार बार ,
देहु लेहु खरचहु मोको जनि गहुरे ।
ब्याही के न सँग रहौँ तीन लोक प्रभु जौन ,
काल के चिन्हारे लोग मोसे कहैँ रहुरे ।


रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।