रचना श्रीवास्तव ने जोरदार आवाज़ में शब्दों के बोलने का अहसास करवाया है । शब्दों की फरियाद है कि उनको किताबों में ही बन्द न रखो, ऐसा करने से दीमक खा जाएगी । इसीलिए किसी ताँका कही गई बात को उपयोग में लाना जरूरी है -
पन्नो में शब्द
बंद रहे सदियों
घुटती साँसें
दीमक -ग्रास बने
बिखरे आधे होके