Last modified on 8 दिसम्बर 2019, at 23:59

भाव-कलश (ताँका--संग्रह) / रचना श्रीवास्तव

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:59, 8 दिसम्बर 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रचना श्रीवास्तव ने जोरदार आवाज़ में शब्दों के बोलने का अहसास करवाया है । शब्दों की फरियाद है कि उनको किताबों में ही बन्द न रखो, ऐसा करने से दीमक खा जाएगी । इसीलिए किसी ताँका कही गई बात को उपयोग में लाना जरूरी है -

पन्नो में शब्द
बंद रहे सदियों
घुटती साँसें
दीमक -ग्रास बने
बिखरे आधे होके