Last modified on 27 मई 2017, at 16:02

भिखारी / नवीन ठाकुर 'संधि'

कांखोॅ में टांगैॅ छै झोरा,
हाथों में लै छै कटोरा।

घरेॅ-घोॅर घूमै छै,
मुट्ठी-चुटकी मांगै छै।
येहेॅ छैकैॅ करमोॅ रोॅ फेरा।।
कांखोॅ में टांगैॅ छै झोरा।

मैलोॅ-कुचैलोॅ रहै छै,
नया-पुरानोॅ पीन्हैॅ छै।
लोर पोछी केॅ कपार धुनै छै,
सब्भै ठीं करै छै लिहोरा।
कांखोॅ में टांगैॅ छै झोरा।

कोय छै लूल्होॅ कोय छै लंगड़ा,
कोय पैदल मांगै लेॅ चलला।
तेॅ कोय चलाय केॅ जाय छै ठेला,
गाँव घोॅर बाजार हाथ पसारै छै मेला।
लोर बहाय छै ‘‘संधि’’ देखी केॅ तोरा।।
कांखोॅ में टांगैॅ छै झोरा।