भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भीड़ में अकेली तुम हो / अरनेस्तो कार्देनाल / मंगलेश डबराल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:07, 24 अगस्त 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भीड़ में अकेली तुम हो
जैसे आसमान में अकेला चाँद
और अकेला सूरज है

कल तुम स्टेडियम में थीं
हज़ारों-हज़ारों लोगों के बीच

और जैसे ही मैं आया
मैंने तुम्हें देख लिया
गोया अकेली तुम थीं
खाली स्टेडियम में

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल