Last modified on 31 मार्च 2019, at 15:26

भुट्टा / चन्दन सिंह

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:26, 31 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्दन सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भुट्टे
मुझे बेहद पसन्द हैं

सड़क किनारे
चूल्हे की आँच पर सिंकते भुट्टे
जीभ पकड़कर खींच लेते हैं मुझे अपने पास
हाथों में कितनी गर्मजोशी से आते हैं वे
अपने ही पत्तलों पर
नमक
हरी मिर्च
स्वाद की काली धारियाँ
और ख़ुशबुओं के अपने प्रभा-मण्डल के साथ

कोई-कोई भुट्टा
तो इतना खिच्चा
कि दोनों को अँगुलियों से छुड़ाते हुए लगता है
मानो छू रहा हूँ
किसान की देह पर पसीने की बून्दें

भुट्टा खाने के बाद
नियम से नहीं पीता हूँ पानी
नियम से तोड़कर उसे सूँघता हूँ
पता नहीं किसने बताए ये नियम और इनके क्या फ़ायदे हैं
पर मेरी आदत से
कुछ दोस्त परेशान रहते हैं
मुझे समझाते हैं
कि इन चूल्हों का कोयला
मसानघाट से
लाया हुआ होता है

पर मैं अवश
खा ही लेता हूँ भुट्टे
सड़क किनारे
औघड़ की तरह ।