भुला गइल मनवा जान के।।
मत-गरभ में भगती कबूलल, इहाँ सुतल बाड़ तान के।।
एही कायागढ़ में पाँच गो सुहागिन, पाँचों सुतल बा एको नाहिं जाग के।।
क्हे भगती दास कर जोरी, एक दिन जमुआ लेइ जाई बान्ह के।।
भुला गइल मनवा जान के।।
मत-गरभ में भगती कबूलल, इहाँ सुतल बाड़ तान के।।
एही कायागढ़ में पाँच गो सुहागिन, पाँचों सुतल बा एको नाहिं जाग के।।
क्हे भगती दास कर जोरी, एक दिन जमुआ लेइ जाई बान्ह के।।