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भूमि मथूँगी, गगन गहूँगी / शर्मिष्ठा पाण्डेय

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भूमि मथूँगी ,गगन गहूँगी
चन्द्र-सूर्य मसलूँगी
दाता
शिव का वरण करुँगी

भस्म मलूँगी ,भवन तजूँगी
भूत-प्रेत मैं बना सखा
क्रीड़ा शमशान करुँगी
दाता
शिव का वरण करुँगी

सर्प सिंगार करूँ मैं सोलह
बिच्छु ,बिछुए धर लूँगी
मद्य चषक मैं भरूँ गरल से
गटक हलाहल लूँगी
दाता
शिव का वरण करुँगी

विषफल के,पग बाँधू घुँघरू
साष्टांग नटराज गिरूँगी
कर निनाद सृष्टि थर्राऊँ
तांडव सूत्र रचूँगी
दाता
शिव का वरण करुँगी

डम-डम डमरू बजा शपा
मैं निद्रा,दसों दिशा तोडूँगी
अंजुरी से सागर उलचूँ
मैं चरण शम्भू धोऊंगी
दाता
शिव का वरण करुँगी दाता
शिव का वरण करुँगी