Last modified on 1 अक्टूबर 2012, at 12:28

भूले भूले भौंर बन भाँवरे भरैंगे चहूँ / द्विज

भूले भूले भौंर बन भाँवरे भरैंगे चहुँ,
                  फूलि फूलि किंसुक जके से रही जायहैं.
द्विजदेव की सौं वह कूजन बिसारि कूर,
                  कोकिल कलंकी ठौर ठौर पछितायहैं.
आवत बसंत के न ऐहैं जो पै स्याम तौ पै,
                  बावरी ! बलाय सों,हमारेऊ उपायहैं.
पीहैं पहिलेई तें हलाहल मँगाय या,
                  कलानिधि की एकौ कला चलन न पायहैं.