भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भूल्या बिसरया भाईडां ने / तन सिंह

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:29, 16 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भूल्या बिसरया भाईडां ने आज लवना लागी रे
जागी रे जागी जागी दिवळे री जोत जागी रे
बरसां सूं पतंगो आयो पांवणो

समदर रै किनारे मेळो चालै नी पतंगा रे
सुणीजै भागीरथ आया घरां आई गंगा रे
बांटां रे घट-घट मे चानणो

आज म्हारै मनडे रो सौवणो मोर नाच्यो रे
परभातां री प्रीत रो रळियाणो रंग राच्यो रे
फ़ूलां सूं छायोडो म्हारो आंगणो

तकदीरां रा आंझा दिन आंगळियां गिणीजै रे
सतियां रा सन्देशा महारै गीतां मे सुणीजै रे
नीठै सूं आयो रे महानै जीवणो

खेती महांरी ऊधडी है थांरी रखवाळी रे
जगदम्बा माता म्हे थांरै भरोसै रा हाळी रे
काळां मे करजो रे मत्ती रीसणो |

15 नवम्बर 1965