Last modified on 2 मार्च 2010, at 09:22

भेजे मनभावन के उद्धव के आवन की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

भेजे मनभावन के उद्धव के आवन की,
सुधि ब्रज-गाँवनि मैं पावन जबै लगीं ।
कहै रतनाकर गुवालिनि की झौरि-झौरि,
दौरि-दौरि नन्द पौरि आवन तबै लगीं ॥
उझकि-उझकि पद-कंजनि के पंजनि पै,
पेखि-पेखि पाती छाती छोहनि छवै लगीं ।
हमकौं लिख्यौ है कहा, हमकौं लिख्यौ है कहा,
हमकौं लिख्यौ है कहा कहन सबैं लगीं ॥26॥