http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AD%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE_%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82_/_%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%9C&feed=atom&action=historyभेड़िया मैं / सूरज - अवतरण इतिहास2024-03-28T23:08:37Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AD%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE_%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82_/_%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%9C&diff=117259&oldid=prevअनिल जनविजय: नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरज |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> मिसालों की ज़रूरत, क़िस…2011-05-16T09:11:57Z<p>नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरज |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> मिसालों की ज़रूरत, क़िस…</p>
<p><b>नया पृष्ठ</b></p><div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=सूरज<br />
|संग्रह=<br />
}} <br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
मिसालों की ज़रूरत,<br />
क़िस्सों की ख़ुराक<br />
और अपने<br />
अपराधों को श्लील दर्ज़ करने के<br />
लिये सभ्यता ने तुक्के पर ही<br />
भेड़िये को बतौर खल-पात्र चुना<br />
<br />
इंसान की रुहानी भूख के लिए<br />
घृणित क़िस्सों का किरदार बना<br />
भेड़िया, जान न पाया अपना<br />
अपराध, जबकि यह बताने में<br />
नही है किसी क्षमा की दरकार<br />
कि शिकार कौन नही करता<br />
<br />
बेदोष, मूक भेड़िए की लाचारी का<br />
बहाना बनाते रहें अपनी आत्माओं<br />
के सौदागर यह जान लें कि शेर<br />
और नेवले शिकारी हों या इंसान,<br />
तरीका भेड़िए से अलग नही होता<br />
<br />
वे हम थे जिनने शेर और भालू<br />
की ऊँची बिरादरी के आगे टेके<br />
घुटने, माथा झुकाया और उनकी<br />
प्रतिष्ठा में फूँकने के लिये प्राण<br />
भेड़िये का बेजा इस्तेमाल किया<br />
उसे गुनहगार बनाया, जंगली<br />
जलसों से उसे इतनी दूर रखा<br />
जिससे बना रहे उसके मन में<br />
दूरी का बेबस एहसास, लगातार<br />
<br />
भेड़िये की गिनती फ़िक्र का विषय<br />
नहीं रही कभी, उसकी मृत्यु पर ढोल<br />
और ताशे हमने ही बजाए<br />
<br />
उसकी उदासी पर फिकरे कसे गए<br />
(चुप रहने वालों को कहा गया घातकी)<br />
अपने अपराधों के लिए मुहावरेदार साथी<br />
बनाया भेड़िये को सभ्य-मानव ने<br />
<br />
इंसानों से छला गया यह जीव सदमें में<br />
रहा होगा सदियों तक, सर्वाधिक बुद्धिमान<br />
प्रजाति द्वारा दिए गए धोखे की नहीं थी<br />
ज़रूरत, उसे अलग-थलग करने के लिए<br />
आविष्कृत हुए किस्म-किस्म की हँसी,<br />
ख़ौफ़ और शब्दों के हथियार<br />
<br />
हार नही मानी भेड़िए ने जिसके पास<br />
जीते चले जाने के सिवा नही था कोई<br />
दूसरा या तीसरा रास्ता<br />
<br />
इतिहास के सबसे निर्मम और मार्मिक<br />
एकांत में जीवित इस जीव ने साधा<br />
सदियों लम्बी अपनी उदासी को, हम<br />
रोने की उसकी सदिच्छा को जान भी<br />
नही पाए<br />
<br />
इतिहास के निर्माण में शामिल और<br />
उसी इतिहास से बहिष्कृत भेड़िया<br />
कभी नहीं रोता अपने निचाट<br />
अकेलेपन पर<br />
<br />
एक पल के लिए भी नहीं । <br />
</poem></div>अनिल जनविजय