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भोर / दीनदयाल शर्मा

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भाँत-भँतीली खूशबू प्यारी,
महकी फूलों की फुलवारी ।

तितली फूलों पर मण्डराए
भौंरे अपना राग सुनाएँ
पत्ता-पत्ता हरा हुआ है
धरा हो गई हरियल सारी ।

सूरज के उगते ही देखो
चिडिय़ा चहके गीत सुनाए
ओस की बूँदों से टकरा कर
कण-कण को रश्मि चमकाए
मदमाती जब चली पवन तो
महक उठी है क्यारी-क्यारी ।

गेंदा और गुलाब चमेली
सब की खुशबू है अलबेली
जिसे भी देखो मस्ती छाई
जीव जगत के मन को भायी
अपनी मस्ती में हैं सारे
भोली शक्लें प्यारी-प्यारी ।।