भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भोर / रामेश्वर सिंह काश्यप

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:56, 25 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर सिंह काश्यप |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.
गोरकी बिटियवा टिकुली लगा के
पुरुब किनारे तलैया नहा के
चितवन से अपना जादू चला के
ललकी चुनरिया के अँचरा उड़ा के
तनिका लजा, तब बिहँस, खिलखिला के
नूपुर बजावत किरिनियाँ के निकलल,
अपना अटारी के खेललस खिरिकिया,
फैलल फजिर के अँजोर।
2.
करियक्की बुढि़या के डँटलस, धिरवलस
बुढि़या सहम के मोटरी उठवलस
तारा के गहना समेटलस बेचारी
चिमगादुर, उरुआ, अन्हरिया के संगे
भागल ऊ खंड़हर के ओर।
3.
अस उतपाती ई चंचल बिटियवा
भारी कुलच्छन भइल ई धियवा
आफत के पुडि़या, बहेंगवा के टाटी
मारे सहक के हो गइल ई माटी
चिरइन के खोता में जा के उड़वलस
सूतल मुरुगवन के कसके डेरवलस
कुकडूकूँ कइलन बेचारे चिहा के,
पगहा तुड़बलन सुन के, डेरा के-
ललकी-गुलाबी बदरियन के बछरू
भगले असमनवाँ के ओर
4.
सूतल कमल के लागल जगावे
भँवरा के दल के रिझावे, बोलावे
चंपा चमेली के घूंघट हटावे
पतइन, फुनुगियन के झुलूआ झुलावे
तलैया के दरपन में निरखेले मुखड़ा
कि केतना बानी हम गोर।
5.
सीतल पवन के कस के लखेदलस
झाड़ी में झुरमुट में, सगरो चहेटलस
सरसों बेचारी जवानी में मातल
डूबल सपनवा में रतिया के थाकल
ओकर पियरकी चुनरिया ऊ घिंचलस
बरजोरी लागल बहुत गुदगुदावे,
सरसों बेचारी के अखिया से ढरकल
ओसवन के, मोती के लोर।
6.
परबत के चोटी के सोना बनवलस
समुन्दर के हल्फा पर गोटा चढ़वलस
बगियन-बगइचन में हल्ला मचवलस
गँवई, नगरिया के निंदिया नसवलस
किरिनियाँ के डोरा के बीनल अँचरवा,
फैले लागल चारो ओर।
7.
छप्पर पर आइल, ओसारा में चमकल
चुपके से गोरी तब अँगना में उतरल
लागल खिरिकियन से हँस-हँस के झाँके
जहँवा ना ताके के, ओहिजो ई ताके
कोहवर में सूतल बहुरिया चिहुँक के
लाजे इंगोरा भइल, फिर चुपके
अपना सजनवाँ से बहियाँ छोड़ा के
ससुआ-ननदिया के अँखिया बचा के
घइला कमरिया पर धर के ऊ भागल
जल्दी से पनघट के ओर।