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भोर / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो

भोर भेलै भोर
चिरै चुरगुने करलकै शोर
भोर भेले भोर!
लरुआ के नीचें सें सुगबुगैलोॅ
अधसुतलोॅ अधजागलोॅ
बच्चा-बुढ़बा-जुआन, जोड़ियैलोॅ नारी-नर
पूरब के काँथी पर जाय बैठलै भकुवैलोॅ,
गुदरी के लालोॅ रं लपटैलोॅ।
अधमरूवोॅ ठोरोॅ पर, आँखी के कोरोॅ पर
लहराबै लेॅ आतुर खुशियाली-लहर एक!
सुरुजदेव ऐतै जे के जानेॅ
कोन खुशी लानतै जे यै सबलेॅ।
सुरजोॅ के गेला सें,
अन्हरिया भेला सें,
छेलै नुकैलोॅ सब लरुवा में
सहमी केॅ जेना बिलैया सें
साँकरोॅ रं बोली में मुसबा नुकाबै छै।

अलसैलोॅ आँखी में
प्रिय के परछाँहीं छै
कटुता के खाही छै
दुख के गहराई छै
तै पर भी
आशा के एक किरण
जीयै के एक लगन
विजयी रं वे सब पर हाबी छै!
के कहतै कहिया सें
सुरुज देब आबै छै
आबी केॅ जाबै छै
कहरो बरसाबै छै
के कहतै कहिया सें
कटुता के खाही में
दुख के गहराई में
आशा के एक किरण
जीयै के एक लगन
लै केॅ नेङड़े लोॅ
ई जिनगी भरमाबै छै?