भोला बालक है भला कैसे सताऊँ उसको
राह की भीड़ मे क्यों छोड़ के जाऊँ उसको
दर्द मेरा है किसी खोटी अठन्नी जैसा
सुख के बाज़ार में कैसे मैं चलाऊँ उसको
सर्द रातोम में यही चिन्ता रही है मुझको
एक आकाश है ओढ़ूँ कि बिठाऊँ उसको
अजनबी गाँव में ता-उम्र रही येहसरत
बहके अपना कोई रूठे तो मनाऊँ उसको
एक मिट्टी का दीया और अँधेरा इतना
सोचता हूँ कि जलाऊँ या बुझाऊँ उसको ?