भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भौंचक दक्षिण-वाम / राजेन्द्र गौतम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भूल गया
मेरा शहर
सब ऋतुओं के नाम ।

गुलदस्ते
मधुमास को
बेचें बीच ज़ाज़ार
सिक्कों की खनकार में
सिसके मेघ मल्हार
गोदामों में
ठिठुरती
जब से वत्सल घाम ।

पाँवों में
पहिए लगे
करें हवा से बात
पर ख़ुद तक पहॅुचे कहां
चल कर हम दिन-रात
यहाँ-वहाँ
भटका रहीं रोशनियाँ अविराम ।

पूरब सुकुआ
कब उगा
कब भीगी थी दूब
हिरनी छाई गगन कब
चाँद गया कब डूब
सभी कथानक
गुम हुए
भौंचक दक्षिण-वाम ।