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मँद हास चँद्रिका को मँदिर बदन चँद / देव

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मँद हास चँद्रिका को मँदिर बदन चँद ,
सुन्दर मधुर बानि सुधा सरसाति है ।
इन्दिरा ऎन नैन इन्दीवर फूलि रहे ,
विद्रुम अधर दन्त मोतिन की पाँति है ।
ऎसी अदभुत रूप भावती को देख्यो देव ,
जाके बिनु देखे छिनु छाती ना सिराति है ।
रसिक कन्हाई बलि बूझनि हौँ आई तुम्हैँ ,
ऎसी प्यारी पाइ कैसे न्यारी राखी जाति है ।


देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।