भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मंगलेश डबराल / परिचय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(' '''मंगलेश डबराल''' का जन्म सन् 1948 में टिहरी गढ़वाल [[उत्त...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
''' [[मंगलेश डबराल]] ''' का जन्म सन 1948 में टिहरी गढ़वाल  [[उत्तराखंड]] के कापफलपानी गाँव में हुआ और शिक्षा-दीक्षा हुई देहरादून में।
  
'''मंगलेश डबराल''' का जन्म सन् 1948 में टिहरी गढ़वाल  [[उत्तराखंड]] के कापफलपानी गाँव में हुआ और शिक्षा-दीक्षा हुई देहरादून में। दिल्ली आकर हदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करने वेफ बाद वे भोपाल में भारत भवन से प्रकाशित होने वाले पूर्वग्रह में सहायक संपादक हुए। इलाहाबाद और लखनउ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी की। सन् 1983 में जनसत्ता अखबार में साहित्य संपादक का पद सँभाला। कुछ समय सहारा समय में संपादन कार्य करने वेफ बाद आजकल वे [http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%A8%E0%A4%B2_%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%95_%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F नेशनल बुक ट्रस्ट] से जुड़े हैं। मंगलेश डबराल वेफ चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं- [[पहाड़ पर लालटेन]], [[घर का रास्ता]], [[हम जो देखते हैं]] और [[आवाज भी एक जगह है]] । साहित्य अकादेमी पुरस्कार, [[पहल सम्मान]] से सम्मानित मंगलेश जी की ख्याति अनुवादक वेफ रूप में भी है। मंगलेश जी की कविताओं वेफ भारतीय भाषाओं वेफ अतिरिक्त अंगे्रशी, रूसी, जर्मन, स्पानी, पोल्स्की
+
दिल्ली आकर हदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करने के बाद में भोपाल में भारत भवन से प्रकाशित होने वाले पूर्वग्रह में सहायक संपादक हुए। इलाहाबाद और लखनउ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी की। सन् 1983 में जनसत्ता अखबार में साहित्य संपादक का पद सँभाला। कुछ समय सहारा समय में संपादन कार्य करने के बाद आजकल वे [http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%A8%E0%A4%B2_%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%95_%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F नेशनल बुक ट्रस्ट] से जुड़े हैं। मंगलेश डबराल के चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं- [[पहाड़ पर लालटेन / मंगलेश डबराल ]], [[घर का रास्ता / मंगलेश डबराल]], [[हम जो देखते हैं / मंगलेश डबराल ]] और [[आवाज भी एक जगह है / मंगलेश डबराल ]] । [[साहित्य अकादेमी पुरस्कार]], पहल सम्मान से सम्मानित मंगलेश जी की ख्याति अनुवादक के रूप में भी है।
और बल्गारी भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित हो चुवेफ हैं। कविता वेफ अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति वेफ सवालों पर नियमित लेखन भी करते हैं। मंगलेश कविताओं में सामंती बोध एव पूँजीवादी छल-छद्म दोनों का प्रतिकार है। वे यह प्रतिकार किसी शोर-शराबे वेफ साथ नहीं बल्कि प्रतिपक्ष में एक सुंदर सपना रचकर करते हैं। उनका सौंदर्यबोध सूक्ष्म है और भाषा पारदर्शी।
+
 +
मंगलेश जी की कविताओं में भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंगे्रशी, रूसी, जर्मन, स्पानी, पोल्स्की और बल्गारी भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित हो चुवेफ हैं। कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति के सवालों पर नियमित लेखन भी करते हैं। मंगलेश कविताओं में सामंती बोध एव पूँजीवादी छल-छद्म दोनों का प्रतिकार है। वे यह प्रतिकार किसी शोर-शराबे के साथ नहीं बल्कि प्रतिपक्ष में एक सुंदर सपना रचकर करते हैं। उनका सौंदर्यबोध सूक्ष्म है और भाषा पारदर्शी।

18:12, 12 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण

मंगलेश डबराल का जन्म सन 1948 में टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड के कापफलपानी गाँव में हुआ और शिक्षा-दीक्षा हुई देहरादून में।

दिल्ली आकर हदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करने के बाद में भोपाल में भारत भवन से प्रकाशित होने वाले पूर्वग्रह में सहायक संपादक हुए। इलाहाबाद और लखनउ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी की। सन् 1983 में जनसत्ता अखबार में साहित्य संपादक का पद सँभाला। कुछ समय सहारा समय में संपादन कार्य करने के बाद आजकल वे नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े हैं। मंगलेश डबराल के चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं- पहाड़ पर लालटेन / मंगलेश डबराल , घर का रास्ता / मंगलेश डबराल, हम जो देखते हैं / मंगलेश डबराल और आवाज भी एक जगह है / मंगलेश डबराल साहित्य अकादेमी पुरस्कार, पहल सम्मान से सम्मानित मंगलेश जी की ख्याति अनुवादक के रूप में भी है।

मंगलेश जी की कविताओं में भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंगे्रशी, रूसी, जर्मन, स्पानी, पोल्स्की और बल्गारी भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित हो चुवेफ हैं। कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति के सवालों पर नियमित लेखन भी करते हैं। मंगलेश कविताओं में सामंती बोध एव पूँजीवादी छल-छद्म दोनों का प्रतिकार है। वे यह प्रतिकार किसी शोर-शराबे के साथ नहीं बल्कि प्रतिपक्ष में एक सुंदर सपना रचकर करते हैं। उनका सौंदर्यबोध सूक्ष्म है और भाषा पारदर्शी।