Last modified on 13 अप्रैल 2011, at 17:29

मंजिले दर मंजिले है फासले दर फासले / मोहम्मद इरशाद

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:29, 13 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मोहम्मद इरशाद |संग्रह= ज़िन्दगी ख़ामोश कहाँ / म…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


मंज़िले दर मंज़िले हैं फासले दर फासले
रास्ते दर रास्ते हैं हादसे दर हादसे

सोचता हूँ होगा क्या मासूम से वो लोग हैं
राहबर भटका रहे हैं आज जिनके काफिले

चलते-चलते रूक गया हूँ मैं भी इस उम्मीद पे
लोग जो बिछड़े हुए हैं मुझसे शायद आ मिले

ज़िन्दगी की राह में कुछ लोग ऐसे भी मिले
लफ्ज शोलों से थे उनके गोया वो थे दिलजले

लड़खड़ाती नस्लें अपनी जा रही है किस तरफ
देख कर उठते हैं मेरे दिन में कितने वलवले

रंग होता और ही ‘इरशाद’ के अशआर में
मिल गए होते अगर उस्ताद उसको आपसे