भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मंडप / निमाड़ी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मंडप निमाड़ी लोक गीत

म्हारा हरिया मंडप माय ज्डाको लाग्यो रे दुई नैना सी [दो बार ]

म्हारा स्स्राजी गाँव का राजवाई म्हारो बाप दिली केरों राज |ज्डाको लाग्यो रे ...........

म्हारी सासु सरस्वती नदी वय ,महारी माय गंगा केरो नीर ज्डाको लाग्यो रे .............

महारी नन्द कड़कती बिजलई ,महारी बैन सरावन तीज |ज्डाको लाग्यो रे ..............

म्हारो देवर देवुल आग्डो ,म्हारो भाई गोकुल केरो कान्ह|ज्डाको लाग्यो रे .............

म्हारा हरिया मंडप माय ज्डाको लाग्यो रे दुई नैना सी |