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मंतरी / ओम पुरोहित कागद
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प्रधानमंतरी रै गळै री टाई !
जकी नै बो
जितै जावै
बितै ई लटकावै !
उण नै
अळकत आई
उणी दिन समझो खोल‘र बगाई !