भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मंदार-महिमा / प्रदीप प्रभात

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

परम पवित्र मंदार यहाँ,
पापहरणी ताल तलैया।
चारों दिस गाछ-बिरीछ,
सुन्दर सुहाबै भैया।

चौदह रतन खातिर,
समुद्र मथैलै भैया।
देवासुर भूमि रोॅ,
तिलक लगाबोॅ भैया।

मधु दैत्य चाँपी
खड़ा होलै हेकरै पेॅ।
विष्णु मधुसूदन बनी,
पुजाबै मोर भैया।

मधुसूदन धाम यहाँ,
घंटा-शंख गुंजै भैया।
भक्त रोॅ कष्ट निबारै,
शक्तिरुद्र विष्णु-लक्ष्मी मैया।

बीच मनारोॅ पेॅ छै
नरसिंह गुफा भैया।
दिन-रात ज्योति लहराबै,
सिद्ध पीठ कटलाबै भैया।

सीता कुण्ड, शंख कुण्ड,
साधु-संत के आश्रम भैया।
धुनी रमै, वेद पाठ के,
शंख गूँजै छै भैया।

आकाश गंगा कुण्ड,
क्षीर-सागर कुण्ड।
चक्रावत कुण्ड,
चक्रतीर्थ याहीं छै भैया।

विष्णु के शंख विराट,
पांचजन्य शंख कुण्ड।
जिंनगी सुफल करोॅ,
हेकरा देखी हमरोॅ भैया।

विष्णु-लक्ष्मी-सरोसती,
षटपद चिन्ह देखोॅ भैया।
थोड़ोॅ दूर उपर चढ़ी केॅ,
देखोॅ पहचानोॅ मदारोॅ केॅ भैया।

कोय कहै लक्ष्मी तीर्थ,
कोय बोलै जैन भैया।
कर जोड़ी पद गही,
लाभ पाबोॅ भैया।

जैन मुनी वासुपुज्य,
बारमौ तीर्थांकर भैया।
हुनकोॅ निर्माणधामे यहीं ढीया,
कहाबै छै हमरोॅ भैया।

शक्ति शैव सिद्ध विष्णु पीठ,
सब सुख पावोॅ भैया।
भोली बाबा, मुनी बाबा सरल सुमन्त,
यहाँ ऋषि-मुनि ब्रह्मज्ञानी हमरोॅ भैया।

मंदार भूमि पवन पावन,
सब तीर्थों मेॅ नामी भैया।
सबके मालूम छै, सागर जबेॅ मथैलै।
मन्दराचल रोॅ मथानी सेॅ, लक्ष्मी तक निकली एैलै।