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मंदि‍र के अहाते से / नरेश चंद्रकर

सामूहिक प्रयासों से बने भित्ति-चित्र जैसा था वह कोना

उसमें अंकित थी
अधूरी छूटी आशाएँ
अपूर्ण कामनाएँ
पूरे न हो पा रहे मनसूबे
टूटते हुए सपने
नाकामयाबि‍यों की फेहरिस्त
असुरक्षि‍त जीवन की शिकायतें
जीने की सामान्य इच्छाएँ

भित्ति-चित्र जैसे उस कोने में
बढते ही जा रहे थे
मन्नतों के रंगीन डोरे
और नारि‍यल

मंदि‍र के अहाते में खड़े होकर भी
मैंने समझ लिया था :

इच्छाओं का बुरा हाल है

हमारे समय में !!