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मकान-2 / श्याम बिहारी श्यामल

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बड़े इत्मीनान से
निगलते जा रहे हैं
हमें मकान

हम तान लेते हैं मौत
हर रोज़
उनकी आँत में
हम कैसे तोड़ेंगे
यह लाक्षागृह ?